गणित में संख्याओं के प्रकार (Types of Numbers in Maths)

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गणित में संख्याओं के प्रकार (Types of Numbers in Maths)

Overview

इस लेख में हम क्वांटिटेटिव एप्टीटुड (गणित) के एक महत्त्वपूर्ण अध्याय के बारे में जानेंगे - Types of Numbers in Maths, in Hindi

इस लेख में, हम विभिन्न प्रकार की संख्याओं के बारे में जानेंगे।

वास्तविक और सम्मिश्र संख्याएं (Real and Complex Numbers)

संख्याओं को दो प्रमुख समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है: वास्तविक (Real Numbers) और सम्मिश्र संख्याएँ (Complex Numbers)।
Real and Complex Numbers

वास्तविक संख्याएं (Real Numbers)

वे संख्या रेखा (number line) पर लिखी सभी संख्याएँ हैं। दूसरे शब्दों में, वास्तविक संख्या ऐसी संख्या होती है जो काल्पनिक संख्या (imaginary number) नहीं है।

सम्मिश्र संख्याएं (Complex Numbers)

सम्मिश्र संख्याएँ a + bi के रूप की होती हैं, जहाँ a और b वास्तविक संख्याएँ हैं और i एक काल्पनिक इकाई है जिसका मान √-1 है।

\(x^2\) = -9 के रूप के समीकरणों के समाधान वास्तविक संख्या नहीं होते हैं (क्योंकि वास्तविक संख्यों के वर्ग ऋणात्मक नहीं हो सकते हैं)। इसलिए, हमने ऐसे मामलों के लिए सम्मिश्र संख्याएँ इजात कीं।

नोट

एप्टीटुड परीक्षाओं जैसे GMAT, GRE, CAT, SSC, Bank, आदि में, हमारा पाला ज्यादातर वास्तविक संख्याओं से ही पड़ता है, न कि काल्पनिक या सम्मिश्र संख्याओं से।

वास्तविक संख्याओं के प्रकार (Types of Real Numbers)

वास्तविक संख्याओं को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है: परिमेय (Rational numbers) और अपरिमेय संख्याएँ (Irrational numbers)।
Real Numbers

यह वर्गीकरण दो अवधारणाओं के आधार पर किया जा सकता है।

भिन्न के रूप में निरूपित करने की क्षमता (Ability to be represented in terms of Fraction)

परिमेय संख्या (Rational Numbers)

एक संख्या जिसे p/q के रूप में दर्शाया जा सकता है, जहाँ p और q पूर्णांक (integers) हैं और q 0 के बराबर नहीं है।

जैसे की, 3/5, -5/8 आदि।

नोट

सभी पूर्णांकों (integers) को परिमेय संख्याओं में शामिल किया जाता है, क्योंकि किसी भी पूर्णांक z को अनुपात z/1 के रूप में लिखा जा सकता है।

उदाहरण के लिए, 9 एक परिमेय संख्या है क्योंकि 9 को 9/1 के रूप में लिखा जा सकता है, जहाँ 9 और 1 पूर्णांक हैं और हर 1 ≠ 0 है।

अपरिमेय संख्या (Irrational Numbers)

एक ऐसी संख्या जिसे p/q के रूप में व्यक्त नहीं किया जा सकता है, लेकिन संख्या रेखा पर दर्शाया जा सकता है।

जैसे की, √2 = 1.414, 1.46378, π, e, आदि।

समाप्ति और पुनरावृत्ति के आधार पर (Based on termination & recurrence)

यहाँ परिमेय और अपरिमेय संख्याओं को देखने का एक और तरीका दिया गया है:

परिमेय संख्या (Rational Numbers)

ये निम्नलिखित होती हैं :

  • पूर्णांक (जैसे 2, 18, -6) या
  • भिन्न जो समाप्त (terminating) हो जाते हैं (जैसे: 0.2, 1.25) या
  • भिन्न जो आवर्ती (recurring) हैं (जैसे: 0.33333..., 0.16666)

आवर्ती दशमलव (recurring decimal) एक ऐसी संख्या है, जिसमें दशमलव बिंदु के बाद एक या अधिक अंक अंतहीन रूप से दोहराए जाते हैं।

समाप्त होने वाले दशमलव (terminating decimal) संख्याओं की तरह, किसी भी आवर्ती दशमलव संख्या को भी p/q के रूप में व्यक्त किया जा सकता है, अर्थात भिन्न के रूप में।

अपरिमेय संख्या (Irrational Numbers)

वे प्रकृति में गैर-समाप्ति (non-terminating) और गैर-आवर्ती (non-recurring) हैं।

जैसे की, √2, √5, ∛10, π, आदि।

वास्तविक संख्याओं के अन्य वर्गीकरण (Other classifications of Real Numbers)

परिमेय और अपरिमेय वर्गीकरण के अलावा, संख्याओं को निम्नलिखित प्रकारों में भी विभाजित किया जा सकता है:

  • धनात्मक संख्याएँ (Positive Numbers): वह संख्या जो संख्या रेखा पर शून्य के दायीं ओर होती है।
    उदाहरण: 0.9, 1, 2, 3.2, 1.414, आदि।

  • ऋणात्मक संख्याएँ (Negative Numbers): वे संख्याएँ जो संख्या रेखा पर शून्य के बाईं ओर होती हैं।
    उदाहरण: -0.9, -1, -3, -9.2, -1.414, आदि।

नोट

जैसा कि आप देख सकते हैं, परिमेय और अपरिमेय दोनों ही संख्याएँ, धनात्मक या ऋणात्मक हो सकती हैं।

वास्तविक संख्याओं के गुण (Properties of Real Numbers)

  • दो वास्तविक संख्याओं को जोड़ने या गुणा करने पर हमें एक वास्तविक संख्या प्राप्त होती है। उनका क्रम महत्वपूर्ण नहीं है।

  • दो वास्तविक संख्याओं को किसी भी क्रम में घटाया या विभाजित नहीं किया जा सकता है, अर्थात वास्तविक संख्याओं का घटाव और भाग क्रमविनिमेय (commutative) नहीं हैं।

  • हम ऋणात्मक वास्तविक संख्याओं के वर्गमूल (square root) को परिभाषित नहीं करते हैं।

परिमेय संख्याओं के विशिष्ट गुण (Properties specific to Rational Numbers)

  • किसी भी दो दी गई परिमेय संख्याओं का योग, अंतर, गुणनफल और भागफल भी एक परिमेय संख्या होती है (जब तक हम 0 से विभाजित नहीं करते हैं)।

  • किन्हीं दो संख्याओं के बीच परिमेय संख्याओं की अनंत संख्या हो सकती है।

अपरिमेय संख्याओं के विशिष्ट गुण (Properties specific to Irrational Numbers)

  • अपरिमेय संख्याओं को आगे और भी उप-विभाजित किया जा सकता है:
    a. बीजगणितीय संख्याएँ (algebraic numbers) - वे कुछ बहुपद समीकरण (polynomial equation) के समाधान होते हैं (जैसे √2 और golden ratio), और
    b. ट्रान्सेंडैंटल नंबर (transcendental numbers) - वे किसी भी बहुपद समीकरण के समाधान नहीं हैं (जैसे π और e)।

  • किन्हीं दो संख्याओं के बीच अनंत अपरिमेय संख्याएँ होती हैं।




परिमेय संख्या (Rational Numbers)

हम पहले ही देख चुके हैं, कि परिमेय संख्याएँ वास्तविक संख्याएँ होती हैं।

साथ ही, परिमेय संख्याएं या तो सांत (समाप्त) हो सकती हैं (उदाहरण: 0.2, 1.25) या आवर्ती (उदाहरण: 0.33333..., 0.16666). और दोनों को भिन्न के रूप में दर्शाया जा सकता है।

लेकिन हम यह कैसे पहचानेंगे कि दी गई भिन्न सांत है या आवर्ती?

कैसे पहचानें कि एक भिन्न सांत दशमलव या आवर्ती दशमलव देता है?

सांत दशमलव (Terminating decimal) - यदि किसी भिन्न के सरलीकृत रूप के हर (denominator) में केवल अभाज्य कारक (prime factors) 2 या 5 हों।

या

आवर्ती दशमलव (Recurring decimal) - यदि भिन्न के सरलीकृत रूप के हर (denominator) में 2 या 5 के अलावा कम से कम एक कारक और हो।

आइए, एक उदाहरण देखते हैं।

निम्नलिखित भिन्नों में से कौन-सा/से आवर्ती दशमलव है/हैं?

271/128, 203/125, 321/200, 431/150

आइए हम भाजक के अभाज्य गुणनखंडों/कारकों (prime factors) की जाँच करें।
128 = \(2^7\)
125 = \(5^3\)
200 = 2^3 × \(5^2\)
150 = 2 × 3 × \(5^2\)

इन सभी के हर में केवल 2 या 5 अभाज्य गुणनखंड हैं (150 को छोड़कर)। 150 में 3 भी अभाज्य गुणनखंड है। तो, केवल 431/150 आवर्ती दशमलव है। शेष सांत दशमलव हैं।

आइए, अब हम आवर्ती दशमलवों का थोड़ा और विस्तार से अध्ययन करें।

आवर्ती दशमलव (Recurring Decimals)

आवर्ती दशमलव (Recurring Decimal) - एक दशमलव जिसमें एक अंक या अंकों का एक सेट लगातार दोहराया जाता है।

नोट

सभी आवर्ती दशमलव परिमेय संख्याएँ हैं, क्योंकि उन्हें p/q के रूप में व्यक्त किया जा सकता है, जहाँ p और q पूर्णांक हैं।

आवर्ती दशमलव को दोहराए जाने वाले अंकों के ऊपर एक बार लगाकर संक्षिप्त रूप में लिखा जा सकता है। जैसे की, 1/7 = 0.142857142857142857..... = 0.\(\overline{142857}\)

उपरोक्त दशमलव में 142857 अंकों का समुच्चय आवर्ती है। इसलिए, हमने पुनरावर्ती अंकों के पूरे सेट पर एक बार रखा है।

नोट

बार के स्थान पर हम समुच्चय के पहले और अंतिम अंक के ऊपर एक बिंदु लगा सकते हैं।

दो प्रकार के आवर्ती दशमलव (Two types of Recurring Decimals)

  • शुद्ध आवर्ती दशमलव (Pure recurring decimal) - दशमलव बिंदु के बाद के सभी अंक आवर्ती हैं।
    जैसे की, 0.666666...

  • मिश्रित आवर्ती दशमलव (Mixed recurring decimal) - दशमलव के बाद के कुछ अंक आवर्ती नहीं होते हैं।
    जैसे की, 0.1666666... (इस मामले में, केवल अंक 6 आवर्ती है, जबकि अंक 1 आवर्ती नहीं है).

आवर्ती दशमलव को भिन्न में बदलना (Converting Recurring decimals into fraction)

हम देखेंगे कि शुद्ध और मिश्रित आवर्ती दशमलव संख्याओं को भिन्नों में कैसे परिवर्तित किया जाए। दोनों मामलों में मामूली अंतर होता है।

शुद्ध आवर्ती दशमलव को भिन्न में बदलना (Converting pure recurring decimal into fraction)

शुद्ध आवर्ती दशमलव को भिन्न में बदलने के लिए:

भिन्न का अंश = आवर्ती अंकों से बनी एक संख्या (जिसे दशमलव का period कहते हैं)

भिन्न का हर = एक संख्या जिसमें उतने ही नौ हैं, जितने कि आवर्ती अंकों में अंक हैं।

जैसे की, 0.\(\overline{47}\) = 47/99

0.\(\overline{229}\) = 229/999

प्र. 0.7777… को भिन्न के रूप में व्यक्त करें।

व्याख्या :

व्याख्या 1: पारंपरिक विधि

मान लीजिए x = 0.7777…

क्यूंकि आवर्त एक अंक का है, हम दी गई संख्या को 10 से गुणा करेंगे।

तो, 10x = 7.777…

इसलिए, 10x – x = 7.777… - 0.7777…
या 9x = 7
या x = 7/9

व्याख्या 2: सूत्र विधि

संख्या 0.7777 है…

भिन्न का अंश = आवर्ती अंकों से बनी एक संख्या (जिसे दशमलव का आवर्त कहते हैं) = 7

भिन्न का हर = एक संख्या जिसमें उतने ही नौ हैं, जितने कि आवर्ती अंकों में अंक हैं = 9

अतः अभीष्ट भिन्न = 7/9


मिश्रित आवर्ती दशमलव को भिन्न में बदलना (Converting mixed recurring decimal into fraction)

मिश्रित आवर्ती दशमलव को भिन्न में बदलने के लिए:

भिन्न का अंश = आवर्ती और अनावर्ती अंकों से बनी संख्या - दशमलव का वह भाग जो आवर्ती नहीं है

भिन्न का हर = एक संख्या जिसमें उतने ही नौ हैं, जितने कि आवर्ती अंकों में अंक हैं; और उसके बाद उतने ही शून्य हैं, जितने कि अनावर्ती भाग में अंक हैं।

जैसे की, 0.2\(\overline{54}\) = (254 – 2)/990 = 252/990 = 14/55

प्र. 0.27777… को भिन्न के रूप में व्यक्त करें।

व्याख्या :

व्याख्या 1: पारंपरिक विधि

मान लीजिए x = 0.27777…

चूंकि केवल एक अनावर्ती अंक है, हम दी गई संख्या को 10 से गुणा करेंगे।

तो, 10x = 2.7777… = 2 + 0.7777… = 2 + 7/9 (since 0.7777 = 7/9) = 25/9
या x = 25/90 = 5/18

व्याख्या 2: सूत्र विधि

संख्या 0.27777… है|

भिन्न का अंश = आवर्ती और अनावर्ती अंकों से बनी संख्या - दशमलव का वह भाग जो आवर्ती नहीं है = 27 - 2 = 25

भिन्न का हर = एक संख्या जिसमें उतने ही नौ हैं, जितने कि आवर्ती अंकों में अंक हैं; और उसके बाद उतने ही शून्य हैं, जितने कि अनावर्ती भाग में अंक हैं = 90

अतः अभीष्ट भिन्न = 25/90 = 5/18





पूर्णांक (Integers)

हम पहले से ही जानते हैं कि:

  • परिमेय संख्याओं को दो समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है: पूर्णांक (Integers) और भिन्न (Fractions)
    Integers

  • परिमेय भिन्न या तो सांत या आवर्ती हो सकते हैं।

हम पहले ही परिमेय भिन्नों का विस्तार से अध्ययन कर चुके हैं। अब, हम पूर्णांकों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

पूर्णांक क्या होते हैं? (What are Integers?)

संक्षेप में, पूर्णांक परिमेय संख्याएँ हैं। (और परिमेय संख्याएँ वास्तविक संख्याएँ हैं)

हम कह सकते हैं कि पूर्णांक p/q के रूप की वे परिमेय संख्याएँ हैं, जिनमें q = 1 है।
जैसे की, 3 = 3/1, -5 = -5/1 आदि।

संख्या रेखा पर स्थित सभी धनात्मक और ऋणात्मक संख्याएँ (शून्य सहित) पूर्णांक होती हैं।
पूर्णांकों के समुच्चय को 'Z' अक्षर से प्रदर्शित किया जाता है।
तो, Z = { .....-4, -3, -2, -1, 0, 1, 2, 3, 4.....}.

पूर्णांकों के गुण (Properties of Integers)

  • किन्हीं दो पूर्णांकों का योग, गुणनफल और अंतर भी एक पूर्णांक होता है।
    जैसे की, 2 + 4 = 6 (एक पूर्णांक)
    3 × 5 = 15 (एक पूर्णांक)
    -4 + 1 = -3 (एक पूर्णांक)

  • लेकिन यह जरूरी नहीं कि विभाजन के लिए सही हो।
    जैसे की, 4/1 = 4 (एक पूर्णांक)
    1/3 = 0.3333 (पूर्णांक नहीं)

आइए, अब पूर्णांकों के विभिन्न वर्गीकरणों को देखें।

पूर्णांकों के विभिन्न वर्गीकरण (Various Classifications of Integers)

प्राकृतिक और पूर्ण संख्याएं (Natural and Whole Numbers)

  • प्राकृतिक संख्याएँ (Natural Numbers): संख्या रेखा पर 1 और उससे आगे के पूर्णांक (Integers)
    इन्हें N द्वारा दर्शाया जाता है।
    उदाहरण: 1, 2, 3, 4,…. आदि।

  • पूर्ण संख्याएं (Whole Numbers, गैर-ऋणात्मक पूर्णांक): संख्या रेखा पर 0 और उससे आगे के पूर्णांक (Integers)
    जब हम प्राकृतिक संख्याओं में 'शून्य' को शामिल कर लेते हैं, तो इन्हें पूर्ण संख्याएँ कहते हैं।
    उदाहरण: 0, 1, 2, 3, 4, …… आदि।

नोट

प्राकृतिक संख्याएँ और पूर्ण संख्याएँ, दोनों ही पूर्णांकों के उपसमुच्चय हैं।

प्राकृतिक संख्याओं के गुण (Properties of Natural Numbers)

  • योग: किन्हीं दो प्राकृत संख्याओं का योग भी एक प्राकृत संख्या होती है।
    जैसे की, 18 + 22 = 40

  • गुणनफल: किन्हीं दो प्राकृत संख्याओं का गुणनफल भी एक प्राकृत संख्या होती है।
    जैसे की, 18 × 2 = 36

लेकिन यह घटाव और भाग के लिए सही नहीं है।

  • घटाव: किन्हीं दो प्राकृत संख्याओं का घटाव एक प्राकृत संख्या हो भी सकता है और नहीं भी।
    जैसे की, 22 – 18 = 4 (एक प्राकृतिक संख्या)
    18 – 22 = -4 (प्राकृतिक संख्या नहीं)

  • भाग: किन्हीं दो प्राकृत संख्याओं का विभाजन एक प्राकृत संख्या हो भी सकता है, और नहीं भी।
    जैसे की, 22/2 = 11 (एक प्राकृतिक संख्या)
    22/4 = 5.5 (प्राकृतिक संख्या नहीं)

सम और विषम (Even and Odd)

  • सम संख्या (Even Number): कोई भी पूर्णांक जो 2 (शून्य सहित) से विभाज्य हो।
    इसे 2n द्वारा दर्शाया जा सकता है (जहाँ n एक पूर्णांक है)।
    उदाहरण के लिए: 0, 2, 4, 6, 8, 10, -2, -4, आदि।
नोट

प्रत्येक सम संख्या 0, 2, 4, 6 या 8 में समाप्त होती है।

  • विषम संख्या (Odd Number): कोई भी पूर्णांक जो 2 से विभाज्य नहीं है।
    इसे 2n + 1 द्वारा दर्शाया जा सकता है (जहाँ n एक पूर्णांक है)।
    उदाहरण के लिए:- 1, 3, 9, 13, -1, -3, -5 आदि।

विषम और सम संख्याओं के गुण (Properties of odd and even numbers)

गुण I: योग
  • केस I: सम संख्याओं का योग सम होता है।
    जैसे की, 2 + 4 = 6; 2 + 4 + 6 = 12

  • केस II: विषम संख्याओं की विषम संख्याओं का योग विषम होता है। जैसे की, 1 + 3 + 5 = 9.
    विषम संख्याओं की सम संख्या का योग सम होता है। जैसे की, 1 + 3 = 4

  • केस III: जब विषम और सम संख्याओं को जोड़ा जाता है, तो:
    a) योग विषम होता है: जब विषम संख्याओं की विषम संख्या होती हैं।
    b) योग सम होता है: जब विषम संख्याओं की सम संख्या होती हैं।

गुण II: घटाव
  • केस I: दो सम संख्याओं का अंतर हमेशा सम होता है।
    जैसे की, 4 – 2 = 2

  • केस II: दो विषम संख्याओं का अंतर हमेशा सम होता है।
    जैसे की, 7 – 3 = 4

  • केस III: एक विषम और एक सम संख्या का अंतर हमेशा विषम होता है।
    जैसे की, 9 – 4 = 5

नोट

यदि दो संख्याओं का योग विषम है, तो उनका घटाव भी विषम होगा।
जैसे की, 7 + 4 = 11; अतः, 7 - 4 = 3

यदि दो संख्याओं का योग सम है, तो उनका घटाव भी सम होगा।
जैसे की, 8 + 6 = 14; अत: 8 - 6 = 2

गुण III: गुणनफल
  • केस I: सभी विषम संख्याओं का गुणनफल विषम होता है।
    जैसे की, 5 × 7 = 35

  • केस II: सभी सम संख्याओं का गुणनफल, या विषम और सम संख्याओं का गुणनफल सम होता है।
    जैसे की, 4 × 8 = 32; 3 × 6 = 18

गुण IV: भाग

हम उन मामलों पर विचार करेंगे जहां अंश, हर का गुणज (multiple) है।

  • केस I: यदि अंश सम है और हर विषम है, तो परिणाम हमेशा एक सम संख्या होता है।
    जैसे की, 18/3 = 6.

  • केस II: यदि अंश और हर दोनों सम हैं, तो परिणाम सम या विषम हो सकता है।
    जैसे की, 20/5 = 4; 18/6 = 3.

  • केस III: यदि अंश विषम है और हर सम है, तो अंश हर का गुणज नहीं हो सकता। अतः, परिणाम एक पूर्णांक नहीं होगा, बल्कि एक अंश (fraction) होगा।

  • केस IV: यदि अंश विषम है और हर विषम है, तो परिणाम हमेशा विषम होता है।
    जैसे की, 27/3 = 9.

अभाज्य और समग्र संख्याएँ (Prime and Composite Numbers)

  • अभाज्य संख्याएँ (Prime Numbers): एक धनात्मक संख्या (1 को छोड़कर), जो केवल '1' और 'स्वयं' से विभाज्य है।
    जैसे की, 2, 3, 5, 7, 11, 13, …… आदि।

  • समग्र संख्याएँ (Composite Numbers): सभी पूर्णांक (1 को छोड़कर) जो अभाज्य नहीं हैं।
    उन्हें मिश्रित कहा जाता है क्योंकि वे दो या दो से अधिक अभाज्य संख्याओं से बने होते हैं। तो, एक भाज्य संख्या में 1 और स्वयं के अलावा अन्य गुणनखंड (factors) भी होते हैं।

नोट
  • 1 न तो अभाज्य है और न ही सम्मिश्र।

  • 2 सबसे छोटी अभाज्य संख्या है, और एकमात्र अभाज्य संख्या है जो सम है। अन्य सभी अभाज्य संख्याएँ विषम हैं।

1-100 के बीच 25 अभाज्य संख्याएँ हैं।
Prime numbers

अभाज्य संख्या की पहचान कैसे करें? (How to identify a prime number?)

कोई संख्या अभाज्य संख्या है या नहीं, इसकी जाँच करने के कुछ तरीके हैं।

विधि I
  • चरण 1: दी गई संख्या को लिख लें।
  • चरण 2: अगली संख्या ज्ञात कीजिए जो एक पूर्ण वर्ग (perfect square) है।
  • चरण 3: इस संख्या का वर्गमूल (square root) ज्ञात कीजिए।
  • चरण 4: चरण 3 में प्राप्त संख्या से कम सभी अभाज्य संख्याएँ (prime numbers) ज्ञात कीजिए।
  • चरण 5: यदि चरण 4 में पाई गई कोई भी अभाज्य संख्या दी गई संख्या को विभाजित करती है, तो दी गई संख्या एक अभाज्य संख्या नहीं होगी, अन्यथा यह एक अभाज्य संख्या होगी।
विधि II
  • चरण 1: संख्या के सभी गुणनखंड (factors) ज्ञात कीजिए।
  • चरण 2: यदि संख्या के केवल दो गुणनखंड हैं, 1 और स्वयं, तो वह एक अभाज्य संख्या है।
  • चरण 3: यदि किसी संख्या में इन दो गुणनखंडों से अधिक है, तो वह एक भाज्य संख्या है।

अभाज्य संख्याओं के गुण (Properties of prime numbers)

गुण 1: अभाज्य संख्याओं के लिए सामान्य व्यंजक (Generic expression for Prime numbers)

3 से बड़ी सभी अभाज्य संख्याओं को 6n - 1 या 6n + 1 (जहाँ n एक प्राकृत संख्या है) के रूप में व्यक्त किया जा सकता है, अर्थात 6 से विभाजित करने पर वे 1 या 5 शेष छोड़ देते हैं।
जैसे की, 11 = (6 × 2) – 1
13 = (6 × 2) + 1

लेकिन ध्यान रखें, कि इससे उल्टा हमेशा सच नहीं होता है। वे सभी संख्याएँ जो 6n - 1 या 6n + 1 के रूप में होती हैं, आवश्यक नहीं कि हमेशा अभाज्य हों।
जैसे की, जब n = 4, 6n + 1 = 25 (अभाज्य संख्या नहीं)
जब n = 8, 6n + 1 = 49 (अभाज्य संख्या नहीं)

गुण 2: अभाज्य संख्याओं के जोड़े (Twin Primes)

अभाज्य संख्याओं के जोड़े (Twin Primes) – जब कोई दो क्रमागत विषम संख्याएँ अभाज्य हों।
जैसे की, (3, 5), (5, 7), (11, 13), (17,19), आदि।

गुण 3: अभाज्य संख्याओं की तिकड़ी (Prime triplet)

अभाज्य संख्याओं की तिकड़ी (Prime triplet) – जब तीन क्रमागत विषम संख्याएँ अभाज्य हों।
केवल एक अभाज्य तिकड़ी है: (3, 5, 7).

गुण 4: समान्तर श्रेणी (Arithmetic Progression)

अभाज्य संख्याओं के कुछ समुच्चय समान्तर श्रेणी में हो सकते हैं।
जैसे की, 11, 17, 23, 29 (6 का अंतर)

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