लोक प्रशासन में क्रिटिकल थ्योरी क्या होती है ?

Share on:
लोक प्रशासन में क्रिटिकल थ्योरी क्या होती है ?

Overview

इस लेख में हम यूपीएससी परीक्षा से सम्बंधित लोक प्रशासन के क्रिटिकल थ्योरी विषय के बारे में अध्ययन करेंगे।

क्रिटिकल थ्योरी की उत्पत्ति

  • क्रिटिकल थ्योरी का जन्म 18 वीं शताब्दी के यूरोप और अमेरिका में हुआ था।
  • क्रिटिकल थ्योरी समाजशास्त्रीय विचार की एक श्रेणी है जो कार्ल मार्क्स के काम से विकसित हुई है।
  • विभिन्न सामाजिक वैज्ञानिकों ने इस सिद्धांत में योगदान दिया, जैसे कि एंटोनियो ग्राम्स्की, जुर्गेन हेबरमास, मैक्स होर्खाइमर, थियोडर एडोर्नो, हर्बर्ट मार्क्युज़, जॉर्जट लकसाक्स, कांट (Antonio Gramsci, Jurgen Habermas, Max Horkheimer, Theoder Adorno, Herbert Marcuse, Georgr Luckacs, Kant)।
  • मैक्स होर्खाइमर, थियोडर एडोर्नो और हर्बर्ट मार्क्युज़ (Max Horkheimer, Theoder Adorno and Herbert Marcuse) फ्रैंकफर्ट स्कूल के कुछ सामाजिक विचारक थे (1920 के आसपास)। इस सिद्धांत के विकास में फ्रैंकफर्ट स्कूल (Frankfurt School) का बड़ा योगदान रहा है।

क्रिटिकल थ्योरी/सिद्धांत क्या है?

यह सिद्धांत धार्मिक और सरकारी आधिपत्य को खत्म करने के लिए तर्क (विज्ञान तर्क और व्यक्तिगत आत्मनिर्णय) का उपयोग करने का पक्षधर है। इस तरह यह द्वंद्वात्मक विचार प्रक्रियाओं और परिवर्तन को बढ़ावा देता है।

क्रिटिकल थ्योरी का मुख्य उद्देश्य व्यक्तियों में चेतना पैदा करना है। एक बार जब जनता जागृत हो जाती है, तो वे स्वाभाविक रूप से राज्य की राजनीतिक प्रणाली को बदलने और कल्याणकारी राज्य स्थापित करने का काम करेंगे, एक ऐसा राज्य जो हर व्यक्ति को अवसरों की समानता प्रदान करे।

हम जानते हैं कि नौकरशाही (bureaucracy) व्यक्तियों के बजाय, नियमों और आदेशों के पालन पर जोर देती है। इसलिए, व्यक्तिपरक और व्यक्तिवादी सोच पर क्रिटिकल थ्योरी का यह ध्यान स्वभाव से इसे नौकरशाही विरोधी बनाता है।

जैसा कि आप अनुमान लगा सकते हैं, क्रिटिकल सिद्धांत किसी भी अन्य क्षेत्र की तुलना में लोक प्रशासन के लिए अधिक प्रासंगिक है। इसी पर अब हम चर्चा करने जा रहे हैं।

लोक प्रशासन में क्रिटिकल थ्योरी

क्रिटिकल थ्योरी के दार्शनिक और व्यावहारिक पहलुओं ने सामाजिक विज्ञानों को बहुत प्रभावित किया है, विशेष रूप से लोक प्रशासन को| इसने सार्वजनिक संगठनों के मानवीयकरण पर बल दिया है| यह एक पोस्ट-वेबरियन (post-Weberian) अवधारणा है।

  • संरचना से अधिक लोगों को महत्व: सभी आधुनिक लोक प्रशासन सिद्धांतों ने संगठन में लोगों को अधिक महत्व दिया है (संगठनों की औपचारिक संरचनाओं की तुलना में)।

  • मूल्य-आधारित सार्वजनिक प्रशासन: क्रिटिकल थ्योरी लोक-प्रशासन के मूल्य-आधारित, प्रामाणिक चरित्र को स्वीकार करता है। कोई लोक प्रशाशक जो मौजूदा सार्वजनिक प्रथाओं और कम असमानता और उत्पीड़न वाले भविष्य के बीच विरोधाभास को देखता है, वो सामाजिक परिवर्तन करने के लिए एक गाइड के रूप में क्रिटिकल थ्योरी का उपयोग कर सकता है।

लोक प्रशासन में क्रिटिकल थ्योरी का सबसे सफल रूप

Jurgen Habermas का संचार सिद्धांत (communication theory) आजकल लोक प्रशासन में क्रिटिकल थ्योरी का सबसे अधिक उपयोग किया जाने वाला संस्करण है - यानि सामाजिक परिवर्तन के लिए संचार का एक महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में प्रयोग।

वेबर की तरह, हेबरमास आधुनिक राज्य में तकनीकी दक्षता के प्रसार को जन नौकरशाही के माध्यम से संदर्भित करता है। जैसे-जैसे समाज में नौकरशाही बढ़ती जा रही है, सामाजिक शक्ति और विवेकाधिकार नौकरशाही के राज्य तंत्र के हाथों में केंद्रित होते जा रहे हैं।

हालांकि, नौकरशाही संरचनाओं पर अत्यधिक निर्भरता कई कारणों से बुरी होती है।

  • लोक नौकरशाही की विस्तारवादी प्रकर्ति इसकी लोकप्रियता से मेल नहीं खाती है। नौकरशाही की इस बात पर काफी आलोचना होती है, कि यह अपने आप को बड़ा करने में लगी रहती है, और अपने को जनता और उनकी जरूरतों से दूर रखती है| इसलिए जनता इस पर ज्यादा भरोसा नहीं करती है। सार्वजनिक हित और नौकरशाही के हित कई स्थानों पर पृथक दिखते हैं। संगठन ग्राहक को एक बोझ के रूप में देखता है और बदले में ग्राहक संगठन को अप्रभावी मानता है। ऐसी स्थिति में, संगठनात्मक डिजाइन और संचालन, लोकतांत्रिक सेवा के मूल उद्देश्यों के विपरीत काम करने लगते हैं।

    लोक प्रशासन की क्रिटिकल थ्योरी संस्थाओं के लोकतंत्रीकरण और डी-ब्यूरोक्रिटाइजेशन पर बल देती है| इसके लिए यह संचार के मुक्त प्रवाह और बाहरी और आंतरिक (पदानुक्रमित) रिश्तों में निहित अंतर्विरोधों को सामने लाने पर बल देती है|

    लोक प्रशासन में क्रिटिकल थ्योरी उन विकलांगताओं को दूर करने पर केंद्रित है जिन्होंने सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्रों में व्यक्तियों की सच्ची जरूरतों को सामने आने से अवरुद्ध कर दिया है।

  • हालांकि प्रबंधन संरचनाओं और शैलियों में काफी विविधता है, परन्तु उनमें से अधिकांश को प्रकृति में तकनीकी माना जाता है, जो मानव और चीज़ों का किसी भी तरह इस्तेमाल करके बस परिणाम उत्पन्न करने पर ध्यान देती हैं।

    इसके विपरीत, सार्वजनिक संगठन की क्रिटिकल थ्योरी संगठनात्मक जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में भी रुचि रखती है।

comments powered by Disqus